1849 में पंजाब का ब्रिटिश साम्राज्य में विलय आधुनिक भारतीय इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना है। यह इतिहास की विडंबना है कि जिस सिक्ख साम्राज्य को रणजीत सिंह ने अपने कठोर परिश्रम एवं वीरता से जन्म दिया तथा राजनीतिक कुशलता से अंग्रेजों के अपवित्र मंसूबों से उसकी रक्षा की, वही साम्राज्य उनकी मृत्यु (1839ई.) के मात्र 10 वर्ष बाद ही पके फल की तरह ब्रिटिश सम्राज्यवाद के झोले में जा गिरा।
रणजीत सिंह की मृत्यु के पश्चात पंजाब में बहुत गड़बड़ी एवं अव्यवस्था फैली। सिक्ख सेना की शक्ति ने पंजाब में अराजकता की स्थिति उत्पन्न कर दी। सिक्ख नेताओं ने सेना के नियंत्रण से मुक्ति पाने के लिए उसे अंग्रेजों से भिड़ा दिया। इसके परिणाम स्वरुप सिक्खसेना एवं अंग्रेजो के बीच जो भीष्म संग्राम हुए। इस द्वितीय अंग्रेज ---सिक्ख युद्ध में सिक्खों की भयानक पराजय हुई और उन्हें जान माल की गंभीर हानी उठानी पड़ी। सिक्खों ने अंग्रेजी सेना के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया। अंग्रेज पंजाब में घुस गए।
29 मार्च 1849 ईसवीं को डलहौजी ने एक घोषणा द्वारा पंजाब को अंग्रेजी राज्य में मिला लिया। रंजीत सिंह के पुत्र दिलीप सिंह को पेंशन देकर उसकी माता रानी झिंदन के साथ इंग्लैंड भेज दिया गया। पंजाब का शासन अंग्रेजों के हाथों में आ गया। सिक्ख सेना भंग कर दी गई।शासन के सभी महत्वपूर्ण पदों पर अंग्रेजी अधिकारियों को नियुक्त किया गया।इस प्रकार डलहौजी ने प्रतिशोधात्मक कार्यवाही कर सिक्खों की शक्ति को सदा के लिए कुचल डाला
डलहौजी द्वारा पंजाब विलय का औचित्य:-
अनेक इतिहासकारों ने डलहौजी की पंजाब नीति की कटु आलोचना की है तथा ब्रिटिश साम्राज्य में इसके विलय पर प्रश्नचिन्ह खड़ा किया है। इतिहासकार ट्राटर के अनुसार "डलहौजी की नीति किसी सिद्धांत या न्याय पर आधारित नहीं थी।"
डलहौजी ने एक सोची-समझी योजना के अंतर्गत कार्य किया। उसने मूलराज एवं छत्तर सिंह के विद्रोह को तुरंत दबाने की ओर ध्यान नहीं दिया। बल्कि एक महीनाा तक प्रतीक्षा कर उस विद्रोह को और फैलने का अवसर दिया और फिर घातक लगाकर उसी बहाने पंजाब पर आक्रमण कर दिया ।यह अत्यंत अनुचित कार्य था।
इतिहासकार वेल के अनुसार, पंजाब का अंग्रेजी राज्य में विलय एक "शास्त्र विश्वासघात "था। एक अन्य इतिहासकार ने भी इसी प्रकार का मत व्यक्त किया है।
डलहौजी ने सिक्खों के साथ की गई संधियों का उल्लंघन तथा उनके विश्वास का दुरुपयोग किया। पंजाब में विद्रोह के लिए तथा उसे दबाने के लिए अंग्रेज उत्तरदाई थे। इसके लिए महाराजा दिलीप सिंह को जिम्मेवार ठहराना गलत है क्योंकि वास्तविक शक्ति अंग्रेजों के हाथों में थी। दिलीप सिंह तो नाम मात्र का महाराजा था। पंजाब में घटी सारी घटनाओं के लिए अंग्रेज जिम्मेवार थे।
दिलीप सिंह को गद्दी से पदच्युत करना और पंजाब का ब्रिटिश साम्राज्य में विलय निस्संदेह अन्याय पूर्ण कार्य था ।
कतिपय अंग्रेज इतिहासकारों ने डलहौजी की नीति एवं कार्यों को न्यायोचित सिद्ध करने की चेष्टा की है जो सर्वथा अनुचित है। उनके अनुसार पंजाब के सरदारों द्वारा विद्रोह एवं अशांति पूर्व संधियों का खुल्लमखुल्ला उल्लंघन था। वस्तुतः पंजाब में दिलीप सिंह के विरुद्ध विद्रोह अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध का ऐलान था । अतः पंजाब के विरुद्ध डलहौजी की कार्यवाही उचित थी।
सच्ची बात तो यह थी कि पंजाब का ब्रिटिश साम्राज्य में विलय होना समय की बात थी और इसके लिए अंग्रेजों को केवल एक बहाने की तलाश थी । पंजाब में विद्रोह ने डलहौजी को उसके साम्राज्यवादी मंसूबे पूरे करने का अवसर प्रदान किया किया।
0 Comments